- 2 Posts
- 1 Comment
जवाहरात उद्योग में प्राकृतिक मोती एक मुल्यवान वस्तु है। वस्तुतः, प्राकृतिक मोती का उद्भव
समुद्र की गहराईयों में बसी लाखों ‘सीपियों’ में से कुछ सौ में होता है। अभी विगत कुछ
10 -15 वर्षों में मनुष्य ने विज्ञान की प्रगति के आधार पर गहन अध्ययन के उपरान्त ‘सीपियों’
में मोती के निर्माण की प्रक्रिया के रहस्यों को जान लिया है। अब इन मोतियों का उत्पादन ‘सीपियों’
को पाल कर प्राकृतिकरूप से वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को ‘पर्ल-कल्चर’
या ‘मोती-कल्चर ‘ कहते हैं।
पूर्व में यह विधि केवल खारे पानी में ही कारगर थी परन्तु गहन अनुसन्धान के उपरान्त अब इसे स्वच्छ
एवं मीठे पानी में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। इस विधि द्वारा ‘मोतियों’ के उत्पादन करने के लिए पूर्व में विधिवत ‘ट्रेनिंग’ लेनी आवश्यक है। चूंकि इस प्रकार से उत्पादित ‘मोतियों’ का निर्माण भी प्राकृतिक मोतियों के सामान ही होता है इसलिए इनकी कीमत भी प्राकृतिक मोतियों के सामान होती है। सीपियों में मोती को पूरी तरह से परिपक्व होने में 1.5 से 2 वर्षों का समय लग सकता है।
इस व्य्वसाय में अन्य व्यवसायों के मुकाबले इन्वेस्टमेंट पर रिटर्न (ROI) की मात्रा काफी अधिक होती है। इन्वेस्टमेंट पर आमतौर पर 66.6% सालाना की दर तक रिटर्न प्राप्त किया जा सकता है। ‘नाबार्ड’ के अनुसार यह एक सम्पूर्णरूप से ‘वाईबल’ प्रोजेक्ट है। अन्य जानकारी हेतु लेखक से संपर्क किया जा सकता है।
Written by: Sanjeev Sharma (Luster Aquaculture, India)
e-mail: luster.aquaculture@gmail.com
Read Comments